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मेरे जीवन का मकसद तू है गीत

MERE JEEWA KA MAKSAD TU HAI

MERE JEEWA KA MAKSAD TU HAI

प्रस्तावना

“मेरे जीवन का मकसद तू है” एक ऐसा गहरा और भावनात्मक आराधना गीत है जो एक मसीही विश्वासी की पूरी जीवनदृष्टि को दर्शाता है। यह गीत केवल एक धुन नहीं, बल्कि एक घोषणा है — कि हमारा जीवन, हमारी सांसें, हमारे फैसले, और हमारी अंतिम मंज़िल सब कुछ प्रभु यीशु मसीह के लिए है।


गीत के बोल

मेरे जीवन का मकसद तू है
मेरे जीने का कारण तू है
मैं जीयूँ या मरूँ, वो तेरे लिये
तू मेरा प्रभु

पिछला सब भूलकर, मैं आगे दौड़ा चलूँ
जो मेरे लिये धन था, उसको मैं त्याग दूँ
कि मैं पाऊँ उससे पुरस्कार, दौड़ा मैं जाऊँ
मैं जीयूँ…

मुझ पर है कृपा, बेकार ना जाने दूँ
जिसने मुझे चुना, उसकी और मैं बढ़ूँ
देखूँ तेरी सलीब पर, खिंचा मैं जाऊँ
मैं जीयूँ…


1. “मेरे जीवन का मकसद तू है, मेरे जीने का कारण तू है” – जीवन का केंद्र प्रभु

यह पंक्ति सीधे-सीधे जीवन के सबसे बड़े प्रश्न का उत्तर देती है – मैं क्यों जी रहा हूँ?
और इसका उत्तर है – प्रभु यीशु मसीह के लिए

बाइबिल सन्दर्भ:
फिलिप्पियों 1:21 – “क्योंकि मसीह मेरे लिये जीवन है और मरना लाभ।”

यह वचन स्पष्ट करता है कि जब एक व्यक्ति मसीह को जान लेता है, तो उसका जीवन केवल सांस लेने का साधन नहीं रह जाता। उसकी दिनचर्या, उसके उद्देश्य, उसकी आकांक्षाएं – सब कुछ यीशु के लिए जीना बन जाता है।


2. “मैं जीऊँ या मरूं, वो तेरे लिए – तू मेरा प्रभु” – संपूर्ण समर्पण की घोषणा

रोमियों 14:8
“यदि हम जीवित रहते हैं तो प्रभु के लिये जीवित रहते हैं, और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं। इसलिये चाहे हम जीवित रहें, चाहे मरें, हम प्रभु के ही हैं।”

यह सच्चा समर्पण है – जब जीवन भी मसीह के लिए हो और मृत्यु भी मसीह की महिमा के लिए हो। एक मसीही का उद्देश्य केवल आशीर्वाद प्राप्त करना नहीं, बल्कि स्वयं को पूर्ण रूप से प्रभु के चरणों में अर्पित करना होता है।


3. “पिछला सब भूलकर, मैं आगे दौड़ा चलूँ” – आत्मिक दौड़ में निरंतरता

यह पंक्ति प्रेरित पौलुस के शब्दों से प्रेरित है, जहाँ वह आत्मिक जीवन को एक दौड़ कहता है।

फिलिप्पियों 3:13-14
“एक ही काम करता हूँ: जो बातें पीछे रह गई हैं उन्हें भूलकर, जो आगे हैं उनकी ओर बढ़ता चला जाता हूँ; और निश्‍चयपूर्वक लक्ष्य की ओर दौड़ा चला जाता हूँ…”

प्रभु के लिए जीवन जीना एक निरंतर प्रयास है। यह अतीत की विफलताओं या सफलता में उलझे रहने का नहीं, बल्कि आगे बढ़ते रहने का जीवन है।

“पिछला सब भूलकर” कहना यह नहीं कि हम अनुभवों को अनदेखा करें, बल्कि इसका अर्थ है कि हम उन्हें अपनी आत्मिक गति में रुकावट न बनने दें।


4. “जो मेरे लिए धन था, उसको मैं त्याग दूँ” – आत्मिक प्राथमिकता का बदलाव

फिलिप्पियों 3:7-8
“परन्तु जो बातें मेरे लाभ की थीं, उन्हें मैं मसीह के कारण हानि की समझता हूँ।… मसीह यीशु मेरे प्रभु को जानने के कारण सब वस्तुओं को हानि की वस्तु समझता हूँ।”

सच्चा आत्मिक जीवन वही है जो प्रभु को सर्वोच्च स्थान दे और बाकी सब को गौण माने। जब हम प्रभु को सब कुछ मानते हैं, तो संसार की चीजें हमारे लिए अपना आकर्षण खो देती हैं।


5. “कि मैं पाऊँ उससे पुरस्कार, दौड़ा मैं जाऊँ” – आत्मिक प्रतिस्पर्धा नहीं, उद्देश्य

2 तीमुथियुस 4:7-8
“मैं अच्छा युद्ध लड़ चुका हूँ, मैंने दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास को बनाए रखा है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का मुकुट रखा हुआ है…”

यह गीत हमें उत्साहित करता है कि हम जीवन को हल्के में न लें, बल्कि एक अनुशासित दौड़ की तरह जिएँ जिसमें हम हर दिन प्रभु के पास और पास पहुँचते जाएँ।


6. “मुझ पर है कृपा, बेकार ना जाने दूँ” – अनुग्रह का उत्तरदायित्व

1 कुरिन्थियों 15:10
“परन्तु परमेश्वर के अनुग्रह से मैं वही हूँ जो हूँ; और जो उसका अनुग्रह मुझ पर हुआ, वह व्यर्थ नहीं हुआ।”

जब हम जानते हैं कि प्रभु ने हमें बचाया है, चुना है, और अपने उद्देश्य के लिए अलग किया है – तो हमारा उत्तर यह होना चाहिए कि हम उस कृपा का उपयोग उसकी सेवा के लिए करें।


7. “जिसने मुझे चुना, उसकी ओर मैं बढ़ूँ” – बुलाहट की ओर चलना

यह पंक्ति प्रभु के बुलावे का उत्तर है। प्रभु ने हमें अपने उद्देश्य के लिए चुना है, और अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम उसकी ओर निरंतर बढ़ते जाएँ।

यूहन्ना 15:16
“तुम ने मुझे नहीं चुना, परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया है…”

यह पंक्ति हमें स्मरण कराती है कि हम संयोग से नहीं बल्कि योजना से प्रभु के पास लाए गए हैं। और इस योजना को पूरा करना ही हमारा जीवन उद्देश्य बनना चाहिए।


8. “देखूं तेरी सलीब पर, खिंचा मैं जाऊँ” – क्रूस की ओर आकर्षण

गलातियों 6:14
“पर मसीह की सलीब को छोड़ और किसी बात पर घमण्ड न करूँ।”

जब हम यीशु की क्रूस की ओर देखते हैं, तो हमें अपना जीवन छोटा लगने लगता है, और हमारा हृदय उसकी ओर खिंचने लगता है। वह खिंचाव, वह प्रेम, ही हमें प्रेरित करता है सब कुछ छोड़कर उसके पीछे चलने को।


9. पुनरावृत्ति – “मैं जीऊँ या मरूं, वो तेरे लिए” – समर्पण की अंतिम मुहर

गीत की पुनरावृत्ति केवल लयात्मक दोहराव नहीं है, यह एक कंफर्मेशन है, एक पक्की मुहर है। यह दर्शाता है कि जो कहा गया है, वही सत्य है और उसे बार-बार आत्मा में बैठाना ज़रूरी है।

यह हमें हमारी पहचान और उद्देश्य में और भी स्थिर करता है।


निष्कर्ष: क्यों यह गीत हर मसीही को गाना चाहिए?

“मेरे जीवन का मकसद तू है” गीत केवल एक भजन नहीं, बल्कि एक आत्मिक घोषणा है।

यह हमें याद दिलाता है:


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