परिचय
जब हम अपने जीवन में पीछे मुड़कर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारी हर एक साँस, हर एक विजय, हर एक चमत्कार किसी अदृश्य लेकिन शक्तिशाली प्रेम का फल है — यह प्रेम मसीह येशुआ का है। गीत “येशुआ तेरा धन्यवाद हो” केवल एक भजन नहीं है, यह हमारे दिल से निकली हुई एक गहरी पुकार है जो उस प्रभु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है जिसने हमें शांति, मुक्ति और नया जीवन दिया।
गीत के बोल
येशुआ तेरा धन्यवाद हो
तेरी स्तुति महिमा हो
मेरे जीवन में सदा
तेरे प्रेम की ऊँचाई
तेरे प्रेम की गहराई
तेरे प्रेम की चौड़ाई
है वर्णन से अपार
- शत्रु को हराकर वो विजय देता
मेरी हर लड़ाई को प्रभु खुद ही लड़ता
तेरे प्रेम की ऊँचाई… - अतुल्य पवित्र है तेरा ये प्रेम
हर घाव को हर दर्द को मिटाता ये प्रेम
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गीत के बोल और अर्थ
“येशुआ तेरा धन्यवाद हो
तेरी स्तुति महिमा हो
मेरे जीवन में सदा”
यह आरंभिक पंक्तियाँ एक स्पष्ट और दृढ़ घोषणा हैं। येशु के लिए धन्यवाद केवल शब्दों का उच्चारण नहीं है, बल्कि एक जीवनशैली है। यह वचन हमें सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हमारे होठों पर स्तुति और हमारे जीवन में उसकी महिमा सदैव बनी रहनी चाहिए।
1. प्रेम की ऊँचाई – एक अलौकिक अनुभूति
“तेरे प्रेम की ऊँचाई
तेरे प्रेम की गहराई
तेरे प्रेम की चौड़ाई
है वर्णन से अपार”
येशु का प्रेम केवल मानव प्रेम तक सीमित नहीं है। यह अनंत है, अपरिमेय है। पौलुस प्रेरित ने भी इफिसियों 3:18-19 में लिखा — “ताकि तुम सब पवित्र लोगों समेत यह समझ सको कि उसकी प्रेम की चौड़ाई और लम्बाई और ऊँचाई और गहराई क्या है, और मसीह के उस प्रेम को जान सको, जो ज्ञान से बाहर है।”
यह पंक्तियाँ हमारे मसीही विश्वास की नींव को मजबूत करती हैं:
- ऊँचाई: येशु का प्रेम स्वर्ग से आया, हमें ऊँचाइयों तक उठाने के लिए।
- गहराई: वह पाताल तक उतर गया, हमारे पापों का दण्ड अपने ऊपर लेने के लिए।
- चौड़ाई: उसका प्रेम हर जाति, हर भाषा, हर पापी के लिए फैला है।
2. शत्रु को हराकर दिलाता है विजय
“शत्रु को हराकर वो विजय देता
मेरी हर लड़ाई को प्रभु खुद ही लड़ता”
इस पंक्ति में उस आत्मिक सच्चाई का वर्णन है जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं — हमारी लड़ाई हमारी नहीं है। 2 इतिहास 20:15 कहता है:
“यहोवा तुम से कहता है, डरो मत और घबराओ मत, क्योंकि यह युद्ध तुम्हारा नहीं, परन्तु परमेश्वर का है।”
येशु का क्रूस पर बलिदान ही अंतिम युद्ध था — पाप, मृत्यु और शैतान पर विजयी होकर उसने हमें शांति दी। अब जब हम संसार में विपत्ति, शत्रुता या आत्मिक संघर्षों से गुजरते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए:
- वह हमारे आगे चलता है
- वह हमारी ढाल है
- वह हमारे लिए लड़ता है
येशुआ हमें न केवल युद्ध में ले जाता है, बल्कि विजयी बनाकर बाहर निकालता है।
3. प्रेम जो दर्द मिटाता है
“अतुल्य पवित्र है तेरा ये प्रेम
हर घाव को हर दर्द को मिटाता ये प्रेम”
मनुष्य की आत्मा तब सबसे ज्यादा व्याकुल होती है जब वह भीतर से टूटी होती है। यह टूटन कोई डॉक्टर नहीं देख सकता, कोई दवा नहीं भर सकती। लेकिन येशु का प्रेम ऐसा मरहम है जो आत्मा के गहरे घावों को भी भर देता है।
यशायाह 53:5 कहता है:
“परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएँ।”
येशु का प्रेम:
- पापी को शुद्ध करता है
- दोषी को क्षमा करता है
- घायल को चंगा करता है
- निराश को आशा देता है
4. गीत का आत्मिक प्रभाव
यह गीत केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि आत्मिक शक्ति से भरपूर है। जब हम इसे गाते हैं, हम केवल संगीत का आनंद नहीं ले रहे, बल्कि आत्मिक युद्ध में स्तुति को एक हथियार की तरह प्रयोग कर रहे हैं। स्तुति के द्वारा —
- जंजीरें टूटती हैं
- बंधन समाप्त होते हैं
- आत्मा स्वतंत्र होती है
याद कीजिए जब पौलुस और सिलास ने कारागार में प्रार्थना और स्तुति की थी, तो धरती हिल गई थी (प्रेरितों के काम 16:25-26)। यह वही शक्ति है जो आज भी हमारे जीवन में कार्य करती है।
5. येशु का प्रेम – हमारी पहचान और आशा
इस गीत के केंद्र में येशु का प्रेम है — जो केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक चरित्र है। मसीही जीवन का सार यही है कि हमने ऐसा प्रेम पाया है जो हमें बदलता है, हमारे जीवन को दिशा देता है, और अंततः हमें अनंत जीवन की ओर ले जाता है।
1 यूहन्ना 4:10 में लिखा है:
“प्रेम इसमें नहीं कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, परन्तु इसमें है कि उसने हम से प्रेम किया और अपने पुत्र को हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये भेजा।”
6. व्यक्तिगत अनुभव – मेरा धन्यवाद येशु को क्यों?
मैं जब इस गीत को सुनता या गाता हूँ, तो मुझे अपने जीवन की वे सारी घटनाएँ याद आती हैं जब मैं टूट चुका था, थक चुका था, निराश था — लेकिन येशु का प्रेम वहाँ मेरे साथ खड़ा था। उसने मुझे कभी नहीं छोड़ा। उसका प्रेम मेरे जीवन की रीढ़ है।
क्या आपने कभी जीवन में ऐसा क्षण अनुभव किया है जब कोई भी साथ न था, लेकिन येशु की उपस्थिति ने आपको सहारा दिया? यह वही प्रेम है जिसका वर्णन इस गीत में है।
निष्कर्ष: येशु का धन्यवाद करना क्यों आवश्यक है?
धन्यवाद करना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, यह हमारे हृदय की विनम्रता, पहचान और प्रेम का प्रमाण है।
- जब हम धन्यवाद करते हैं, हम स्वीकार करते हैं कि सब कुछ उसकी कृपा से है।
- जब हम स्तुति करते हैं, हम आत्मिक वातावरण को परिवर्तित करते हैं।
- जब हम उसकी महिमा करते हैं, हम अपने जीवन के केंद्र में येशु को रखते हैं।
अंतिम पंक्तियाँ (प्रार्थना के रूप में):
हे येशुआ,
तेरा धन्यवाद हो – तूने मेरे जीवन को नया अर्थ दिया।
तेरी स्तुति हो – तूने मेरी लड़ाइयाँ लड़ीं।
तेरी महिमा हो – तूने मुझे अपने प्रेम में ढका।
मुझे अपने प्रेम की ऊँचाई में ले चल,
तेरी गहराई में डुबो दे,
तेरी चौड़ाई में मुझे समेट ले,
और मुझे ऐसा जीवन दे, जो तेरी महिमा से चमके।
हालेलुयाह! येशु की स्तुति हो!